भोजपुरी लोक गायक जंग बहादुर सिंह, जो 102 साल की उम्र में भी देशभक्तों में भर देते हैं जोश


उम्र के जिस पायदान पर आदमी अपनी सुधबुध-सी खो बैठता है, शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है, उस पड़ाव पर क्या आप सोच सकते है कोई सुर में गाना गा पाए? आप कहेंगे कि बिल्कुल असंभव है। लेकिन एक ऐसा सिंगर है जो 102 साल की उम्र में भी गा रहा है। इनका नाम है जंग बहादुर सिंह। जंग बहादुर ने आजादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया और देशभक्तों के लिए खूब गाने गाए। हैरानी की बात तो यह है कि जंग बहादुर सिंह ने न तो कहीं से गाने की ट्रेनिंग ली और न ही किसी के पास जाकर सीखा। उन्होंने खुद ही अपने हुनर को तराशा। और तो और गाते समय जंग बहादुर सिंह को किसी माइक की भी जरूरत नहीं होती थी। उनकी आवाज दूर-दूर के गांवों तक गूंजती थी।

अफसोस की बात है कि समय के साथ जंग बहादुर सिंह को भुला दिया गया। जिंदगी के अंतिम छोर पर खड़े जंग बहादुर को न तो उनका हक मिला और न ही सम्मान, लेकिन 102 साल की में जंग बहादुर सिंह जिस तरह गाते हैं, वह गजब ही है। WoW Wednesday में हम आपको जंग बहादुर के बारे में बताने जा रहे हैं।

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जंग बहादुर सिंह

बिहार के सिवान में जन्मे जंग बहादुर सिंह
जंग बहादुर सिंह का जन्म 1920 में बिहार के सिवान में हुआ था। वह पश्चिम बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल कारखाने में नौकरी करते थे। चूंकि गाने का शौक था, इसलिए जंग बहादुर सिंह ने गाना शुरू कर दिया। उन्होंने भोजपुरी के व्यास शैली में खूब गाने गाए और झरिया, धनबाद, दुर्गापुर से लेकर रांची समेत अन्य क्षेत्रों में अपने गायन का परचम लहराया। जंग बहादुर सिंह के गायन की खास बात यह रही कि माइक के बिना ही उनकी आवाज कोसों दूर तक जाती थी। आधी रात के बाद उनके सामने कोई टिकता नहीं था। मानो उनकी जुबां पर सरस्वती विराज जाती हों।

पहले कुश्ती के दंगल के पहलवान थे जंग बहादुर
जंग बहादुर सिंह लोक गायक बनने से पहले एक पहलवान थे। उन्होंने बड़े-बड़े नामी पहलवानों से कुश्तियां की थीं। कुश्ती में उनकी शुरुआत झरिया, धनबाद से हुई थी। दरअसल जंग बहादुर सिंह 22-23 साल की उम्र में छोटे भाई मजदूर नेता रामदेव सिंह के पास कोलफ़ील्ड, शिवपुर कोइलरी, झरिया, धनबाद गए थे। वहां उन्होंने कुश्ती के दंगल में बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए तीन कुंतल के एक बंगाल की ओर से लड़ने वाले पहलवान को पटक दिया। इसके बाद तो जंग बहादुर सिंह ‘शेर-ए-बिहार’ बन गए। उन्होंने तमाम दंगलों में कुश्ती लड़ी।

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जंग बहादुर सिंह के जवानी की तस्वीर

एक घटना और फिर लोक गायक बन गए जंग बहादुर
पहलवानी के दिनों के दौरान ही कुछ ऐसा कि जंग बहादुर सिंह संगीत की दुनिया में उतर गए और वहीं के हो गए। दरअसल दूगोला के एक कार्यक्रम में तब के तीन बड़े गायक मिलकर एक गायक को हरा रहे थे। दर्शक के रूप में बैठे पहलवान जंग बहादुर सिंह ने इसका विरोध किया और कालांतर में इन तीनों लोगों को गायिकी में हराया भी। उसी कार्यक्रम के बाद जंग बहादुर ने गायक बनने की जिद्द पकड़ ली। धुन के पक्के जंग बहादुर रामायण और महाभारत के पात्रों पर गाकर भोजपुरिया इंडस्ट्री में मशहूर हो गए। तब ऐसा दौर था कि जंग बहादुर सिंह अगर किसी प्रोग्राम में नहीं जाते थे तो ऑर्गनाइजर्स भीड़ जुटाने के लिए पोस्टर-बैनरों पर उनकी तस्वीर लगाते थे।

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जंग बहादुर सिंह

आजादी से भी पहले से गाते आ रहे जंग बहादुर
जंग बहादुर सिंह ने भोजपुरी में अब तक ढेरों देशभक्ति गीत गाए हैं। 102 वर्षीय जंग बहादुर सिंह तब से गाते आ रहे हैं जब आजादी का संघर्ष चल रहा था। तब युवा जंग बहादुर देश भक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देश भक्ति के गीत गाचे थे। इस कारण वह कई बार पुलिस के आक्रोश का भी शिकार हुए। पर जंग बहादुर सिंह ने गाना नहीं छोड़ा। देश को आजादी मिलने के बाद भी जंग बहादुर सिंह का घूम-घूमकर देशभक्ति के गाने गाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। वह महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, आजाद, और महाराणा प्रताप की वीर गाथा ही ज्यादा गाते थे और धीरे-धीरे वह लोक धुन पर देशभक्ति गीत गाने के लिए जाने जाने लगे।

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जंग बहादुर सिंह

60 के दशक में जलवा, अब धूमिल पड़ने लगी याददाश्त
60 के दशक में तो जंग बहादुर सिंह का सितारा बुलंदी पर था। झारखंड, बंगाल और बिहार में उनका खूब नाम था। उनके आगे कोई सिंगर नहीं टिक पाता था। लेकिन आज जंग बहादुर की याददाश्त धूमिल पड़ रही है। वह अब भटभटाने लगे हैं। अकेले में कुछ खोजते रहते हैं। देशभक्ति गीत गाते-गाते निर्गुण गाने लगते हैं। पर यह कमाल ही है कि 102 साल की उम्र में भी गा लेते हैं और वह भी चार-चार घंटों तक। जंग बहादुर सिंह दिल के मरीज हैं। डॉक्टर ने उन्हें गाने के लिए मना किया हुआ है। पर कोई उनके पास बैठ जाए और गाने के लिए कहे तो वह चार घंटे तक गाना गा सकते हैं और गाते भी हैं।

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जंग बहादुर की आवाज के मुरीद रहे ये लोक गायक
बताया जाता है कि जंग बहादुर सिंह के गाने सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। भोजपुरी के लोक गायक भरत शर्मा व्यास भी उनकी आवाज सुनने के लिए कोलकाता से आसनसोल आते थे। इस बारे में उन्होंने बताया था, ‘मैं कोलकता से उनकी गायिकी सुनने आसनसोल, झरिया, धनबाद आ जाता था। कई बार उनके साथ बैठकी भी हुई है। भैरवी गायन में तो उनका जबाब नहीं है। इतनी ऊंची तान, अलाप और स्वर की मृदुलता के साथ बुलंद आवाज वाला दूसरा गायक भोजपुरी में नहीं हुआ। उनके समय के सभी गायक चले गए। पर वह अभी भी हैं और गा रहे हैं।’

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